चेतना एक मुख्य विषय है और बहुत सरल भी। परंतु फिर भी बहुत से साधक चेतना को समझ नहीं पाते।
चेतना को समझने से पहले चित्त का ज्ञान, चित्त की परतों का ज्ञान, बुद्धि का ज्ञान और आत्मज्ञान होना अनिवार्य है जोकि ज्ञानमार्ग में इन विषयों पर विस्तार से वर्णन उपलब्ध हैं।
जो साधक यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं, उनसे अनुरोध है कि यदि वह ज्ञानमार्ग से जुड़े नहीं हैं और इन विषयों का कोई ज्ञान नहीं है, तो कृपया पहले ज्ञानमार्ग से जुड़ जाएं और इन विषयों पर अध्ययन कर लें, तभी आपको चेतना का ज्ञान होगा।
चेतना कोई विचार नहीं है जो कि निरंतर चित्त में चलता रहता है। चेतना कोई धारणा नहीं है ना ही कोई मान्यता है। चेतना, चित्त की सबसे ऊपरी परत है यानी बुद्धि से भी ऊपर की परत है चेतना। चेतना यानी मेरे होने का ज्ञान, अनुभवकर्ता का ज्ञान यानी आत्मज्ञान।
जिसमें चेतना का अभाव है वह व्यक्ति या तो अनुभव में डूबा होता है और उसी को मैं मान लेता है या वह अहम पर स्थित रहता है और उसको ही चेतना समझ लेता है। जबकि यह दोनों स्थितियां चेतना को नहीं दर्शाती हैं।
जो भी अनुभव हो रहे हैं उनको अनुभवकर्ता के प्रकाश में प्रकाशित करना चेतना कहलाता है।
बहुत सुन्दर लिखा है
जवाब देंहटाएं🙏🙏🌹🌹
धन्यवाद
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