ब्रह्मज्ञान में हम प्रयोग करते हैं कि अनुभव और अनुभवकर्ता में क्या संबंध है
और यदि हम देखेंगे, तो पाएंगे कि दो नहीं हैं, अद्वैत है, शुन्य है।- दोनों में कोई दूरी नहीं है।
- दोनों में समय का कोई अंतराल नहीं है।
इसीलिए अनुभव की चेतना होती है।
यदि दोनों में दूरी होती, तो दूरी का अनुभव भी होता और यदि दोनों अलग-अलग होते, तो एक को दूसरे का कभी ज्ञान नहीं होता, कोई चेतना नहीं होती।
यानी हमें अनुभव का कभी ज्ञान नहीं होता, जो कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
सुंदर🌺🌺🙏🙏
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख है 👍👉
धन्यवाद
हटाएंजी बिलकुल सही है
जवाब देंहटाएं🙏🙏
धन्यवाद
हटाएं🙏🙏🙏🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंधन्यवाद
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