यदि अस्तित्व का अध्ययन करें, तो पाएंगे की अनुभव है और अनुभव करने वाला है। जिसको अनुभवकर्ता भी कहते हैं।
आत्मज्ञान ये है कि मैं अनुभव नहीं हूं। मैं उस अनुभव का अनुभव करने वाला हूं, यानी मैं अनुभवकर्ता हूं।
- जगत की कोई भी वस्तु, मैं नहीं हूं।
- शरीर, मैं नहीं हूं।
- मन, मैं नहीं हूं।
क्योंकि यह तीनों निरंतर बदलते हैं और मैं नहीं बदलता।
यह तीनों मेरा अनुभव नहीं करते, बल्कि मैं इन तीनों का अनुभव करने वाला हूं। मैं इन तीनों का साक्षी हूं।
बहुत सही लिखा है
जवाब देंहटाएं🙏🙏
धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सरल, सुंदर लेख है 🙏🙏👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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